कॉलेज के दूसरे साल के शुरुआती दिनों की बात है। एक दिन मैं लाइब्रेरी में पढ़ रहा था। तभी एक लड़की मेरे पास आई और मुझसे बोली," हाय आशीष! एक हेल्प चाहिए थी।" वो गुंजन थी। हालांकि वो मेरी ही क्लास में पढ़ती थी, इससे पहले गुंजन से बात कभी नहीं हुई थी। मैने कहा," हां बताओ"। वो बोली," तुम मुझे इस साल का सिलेबस अच्छे से समझा सकते हो?" मुझे गुंजन का यह आग्रह काफी साधारण लगा। खैर, मैने उसे सिलेबस के बारे में सबकुछ बता दिया। उसके बाद हम दोनों ने औपचारिक रूप से अपना अपना परिचय दिया। अगले कुछ दिनों में हमारी दोस्ती हो गई और इसका श्रेय गुंजन को ही जाता था। वो इस तरह कि चूंकि मैं खुद काफी शर्मीला स्वभाव का था, बातचीत की पहली कोशिश गुंजन ही करती थी। धीरे धीरे मैं भी उसके साथ सहज हो गया। इस तरह दोस्ती पक्की होती गई। उन दिनों मैं कॉलेज के बाद मेट्रो पकड़ कर सीधे कोचिंग जाया करता था। करोल बाग स्टेशन मेरा गंतव्य हुआ करता था जहां पहुंचने में करीब एक घंटा लग जाता था। एक दिन गुंजन आई और मुझसे कहा," आशीष, आज मैं भी तुम्हारे साथ मेट्रो में जाऊंगी। ...